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‘लव जिहाद’ और राजनीति / सैयद सलमान
Friday, November 27, 2020 10:10:00 AM - By सैयद सलमान 

तथाकथित लव जिहाद एक झूठा प्रचार लगता है, जिसका मक़सद केवल हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ना और नफ़रत बढ़ाना है
साभार- दोपहर का सामना 27 11 2020

एक शब्द आजकल ज़बरदस्त चर्चा में है, 'लव जिहाद'। सारे फ़साद की जड़ है लव जिहाद। उत्तरप्रदेश में तो इस मामले पर सरकार ने सबसे पहले कड़ा रुख़ अपनाया। लव जिहाद पर जारी बहस के बीच उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने धर्म परिवर्तन से जुड़ा अध्यादेश भी पारित कर दिया। इस अध्यादेश में ऐसे प्रावधान रखे गए हैं कि अगर कोई धर्म छुपाकर या किसी लड़की का जबरन धर्मांतरण कराता है तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी। भले ही इस अध्यादेश को लव जिहाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा हो लेकिन अध्यादेश के प्रारूप में लव जिहाद जैसा कोई शब्द इस्तेमाल नहीं किया गया है, न ही किसी धर्म विशेष की बात की गई है। यानि यह अध्यादेश धर्म परिवर्तन से जुड़े हर मामले में लागू होगा चाहे वो किसी भी धर्म से जुड़ा मामला हो। एक बात ग़ौर करने लायक है कि, इस तरह के मामलों का अचानक से चर्चा में आना और क़ानून बनाने से लेकर लागू करने तक की बातों का इतनी तेज़ी से शामिल होना कोई साधारण बात नहीं है। लव जिहाद के नाम पर ज़मीनी सतह पर ज़बरदस्त भ्रम फैलाया गया है। आमजनों के बीच सोशल मीडिया और आईटी सेल द्वारा फैलाए गए इस अभियान में कई राज्य सरकारों का शामिल होना भी कई सवाल खड़े करता है। इस मामले में राजनैतिक एंगल किस क़दर शामिल है और जनमानस को कैसे मुर्ख बनाया गया है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि जिस लव जिहाद शब्द पर हंगामा हुआ है, अध्यादेश में उस लव जिहाद का सीधे-सीधे कोई ज़िक्र तक नहीं है।

बीते कुछ सालों में देश के विभिन्न राज्यों में तथाकथित लव जिहाद के ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें आरोप लगाया गया है कि मुस्लिम युवकों ने बहला-फुसला कर ग़ैर-मुस्लिम युवतियों को शादी के बहाने ना सिर्फ़ इस्लाम धर्म स्वीकार कराया बल्कि उनके बहाने इस्लाम का प्रचार भी किया। अगर ऐसी तमाम घटनाओं का बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो कुछ बातें सब में सामान्य और एक जैसी नज़र आएंगी। मसलन, लड़की अवयस्क होगी, उसके जबरन इस्लाम स्वीकार कराने की बात को जमकर फैलाया गया होगा, कट्टरपंथी मुस्लिम समूहों का शामिल होना बताया जाएगा, लड़की को प्यार के नाम पर बहलाने-फुसलाने से लेकर यौन शोषण और देह व्यापार में ले जाने तक के आरोप लगेंगे। ये तमाम वो आरोप हैं जो अंतरधर्मीय हर उस विविवाह के बाद परिजनों द्वारा लगाए जाते हैं जिसमें युवक-युवती अलग धर्म के हों। पुलिस थानों में दर्ज अधिकतर रिपोर्ट में ऐसी साम्यता देखने को मिल जाएगी। कुछ जगह पर इसमें से कुछ बातें ठीक भी हो सकती हैं, लेकिन अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं होता। कुछ सवालों के साथ इनकी जांच-पड़ताल की जाए तो मामला साफ हो सकता है। इस तरह के अधिकतर मामलों में ऐसे आरोप लगना सामान्य बात है। लेकिन यह भी सत्य है कि अंतरधर्मीय विवाह में अनेक अड़चनें आती ही हैं। इस्लाम के नाम पर अगर ये सब हो रहा होता तो स्थिति सचमुच चिंताजनक होती लेकिन यह मामले केवल राजनीति से प्रेरित ज़्यादा लगते हैं। लव जिहाद के नाम पर बढ़ते ऐसे मामलों के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहकर मामला साफ़ कर ही दिया है कि, 'ऐतराज़ और विरोध करने वालों की नज़र में कोई हिंदू या मुसलमान हो सकता है, लेकिन क़ानून की नज़र में प्रेमी युगल सिर्फ़ बालिग़ जोड़े हैं।'

पिछले दिनों इस प्रकार के अनेक मामले ऐसे सामने आए हैं, जिसमें शामिल लड़की के घर वालों के भी वही आरोप हैं जो ऐसी घटनाओं में लगाए जाने का चलन है। इन्हीं ताज़ा मामलों में से एक मामले की पक्षकार युवती कानपुर में ही अपने पति के साथ अपनी सुसराल में रह रही है और अपने पति पर लगाए तमाम आरोपों को झूठा बताती है और खुलकर एक कट्टरपंथी संगठन द्वारा धमकाए जाने की बात मीडिया के सामने रखती है। विवाद शुरू होने और थाने में रिपोर्ट दर्ज होने के चार दिन बाद युवती अपने पति के साथ एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करती है जिसमें वह बताती हैं कि उसने अपनी मर्ज़ी से विवाह और धर्मांतरण किया है। दोनो बातों के क़ानूनी काग़ज़ात भी उसके पास हैं। वह उन सारे आरोपों को ख़ारिज करती है जो उसके घर वालों ने उसके पति और सुसराल वालों पर लगाए हैं। लड़की एमबीए कर रही है, पढ़ी लिखी है। वह सवाल करती है कि,“क्या कोई भी मुझे कुछ भी आकर बतायेगा और मैं बहक जाऊंगी? क्या ऐसा होता है?”

पर्दे के पीछे देखा जाए तो इन तमाम घटनाओं और पूरे प्रचार के पीछे राजनैतिक, धर्मांध और ध्रुवीकरण एजेंडा काम करता हुआ नज़र आएगा जहां गांव-गांव, गली-गली, शहर-शहर कुछ संगठन इसका प्रचार-प्रसार करते और भड़काते नज़र आएंगे। लेकिन इन बातों से मुस्लिम युवाओं को यह लाइसेंस नहीं मिल जाता कि वे अंतरधर्मीय विवाह को बढ़ावा दें। प्रेम एक ख़ूबसूरत एहसास है। उसमें अगर केवल आकर्षण है तो उसका मनोवैज्ञानिक हल निकालने की ज़रूरत है। क़ानून बनाकर सख़्ती करने के बजाय अगर काउंसलिंग सेंटर्स बनाए जाते तो ज़्यादा उपयोगी होते। अंतरधर्मीय विवाह के नफ़ा-नुक़सान समझाने के बाद अगर फैसला युगल पर छोड़ा जाए तो काफ़ी हद तक ऐसे मामलों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। लेकिन अगर सच्चे प्रेम के वशीभूत विवाह हो जाते हैं तो उसे सांप्रदायिक रंग देना काफ़ी हद तक अनुचित कहा जाएगा। वैसे धर्म परिवर्तन को लेकर इस्लाम में किसी भी हाल में जब्र-ज़बरदस्ती करना सख़्त मना है। पवित्र धर्मग्रंथ कहता है, "दीन के मामले में कोई ज़बरदस्ती नहीं"- (अल-क़ुरआन २: २५६) सबसे पहले धर्म बदलने का क़ानूनी तरीक़ा अगर समझा जाए तो बहुत सी बातें साफ़ हो सकती हैं। क्या गज़ट करा लेने से, कोर्ट मैरिज करते वक़्त न्यायालय में कह भर देने से या बस मन में मान लेने या लड़के के सामने स्वीकार कर लेने से क़ानूनन धर्म परिवर्तन साबित हो सकता है? सच्चाई यह है कि क़ानूनन धर्म परिवर्तन विवाह क़ानून के नियम अनुसार ही संभव है। इसलिए तथाकथित लव जिहाद एक झूठा प्रचार लगता है, जिसका मक़सद केवल हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ना और नफ़रत बढ़ाना है।

वैसे भी लव जिहाद एक ऐसा शब्द है जिसका इस्लाम से कोई संबंध ही नहीं है। ये शब्द न कहीं क़ुरआन में आया है और ना हदीस में। जिहाद की व्याख्या भी ग़लत तरीक़े से जब-जब पेश हुई है तब-तब इस्लाम और मुसलमान बदनाम हुआ है। इस्लाम की शिक्षा है कि मुसलमानों यानि मुसल्लम ईमान वालों को पहले अपने भीतर की बुराइयों के ख़िलाफ़ जिहाद करना चाहिए। अपनी बुरी आदतों के ख़िलाफ़, झूठ बोलने की आदत के ख़िलाफ़, फ़ितना-ओ-फ़साद फैलाने की आदत के ख़िलाफ़, जलन, द्वेष, नफ़रत के ख़िलाफ़ संघर्ष करने जैसे कर्म जिहाद कहलाते हैं। अपनी मेहनत की कमाई से अनाथों और विधवाओं और ग़रीबों की सहायता करना भी जिहाद है। बुराई के ख़िलाफ़ नफ़्स अथवा अंतरात्मा की भावनात्मक और रूहानी जद्दोजहद को ही जिहाद कहा गया है। अगर जिहाद के असली अर्थ को समझकर मुसलमान जीवन जीने लगें तो तीन बातें निश्चित रूप से मुसलमानों के पक्ष में हो जाएंगी। एक तो वह स्वंय से संघर्ष करता हुआ नेक इंसान बन जाएगा जो इस्लाम का महत्वपूर्ण हिस्सा और शर्त है। दूसरा, जिहाद के नाम पर आतंकी संगठन मुस्लिम युवाओं को बरग़ला नहीं पाएंगे। तीसरा और महत्वपूर्ण काम यह हो जाएगा कि, जिहाद के नाम पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ छेड़ा गया शगूफ़ा अपने आप थम जाएगा। मुस्लिम समाज जिहाद की ग़लत व्याख्या के नाम पर प्रताड़ित होने से बच जाएगा। इस्लामी शिक्षा का काम है क़लम से, वचन से, नेक और आला किरदार से मज़लूमों को सहारा देना और इंसाफ़ क़ायम करना। जिहाद तो हो सकता है बशर्ते उसका इस्तेमाल सांप्रदायिक सद्भाव और देश की सलामती के लिए किया जाए, जिसमें 'लव भरा जिहाद' हो, यानि सर्वधर्मीय प्रेम और सद्भाव के लिए संघर्ष। यह शब्द केवल प्रेम विवाह के लिए इस्तेमाल न होकर अंतरधर्मीय भाई-बहन के प्रेम, पड़ोसी के प्रति प्रेम और सामाजिक सद्भाव को समेटे हुए हो जिसमें अपनत्व और भाईचारा शामिल हो। वही असली 'लव जिहाद' होगा, बाक़ी तो सब राजनैतिक एजेंडा है।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में विजिटिंग फैकेल्टी हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)