Monday, May 20, 2024

न्यूज़ अलर्ट
1) अंशुमान सिंह राजपूत और काजल राघवानी की जोड़ी वाली फिल्म "बड़की बहू छोटकी बहू" ने मचाया गजब धूम.... 2) शुरू होने जा रहा है,काकोरी एक्शन का शताब्दी वर्ष .... 3) खतरों के खिलाड़ी 14 में भाग लेने पर अंकित गुप्ता ने तोड़ी चुप्पी, कहा- रोहित शेट्टी के साथ मीटिंग हुई थी लेकिन….... 4) रणवीर सिंह ने दीपिका पादुकोण संग तलाक की खबरों पर लगाया विराम.... 5) बिकवाली से शेयर बाजार में आया भूचाल, सेंसेक्स ने लगाया 1000 से अधिक अंकों का गोता.... 6) कांस फिल्म फेस्टिवल में चुनी गई उत्तराखंड की फिल्म ‘हमारे बारह’.... 7) एस्ट्राजेनेका दुनिया भर से वापस लेगी अपनी कोविड वैक्सीन… ये बताई वजह....
अच्छा आचरण है ईमान की पहचान / सैयद सलमान
Friday, May 10, 2024 11:37:53 AM - By सैयद सलमान

इस्लाम इंसानी मेलजोल, मानवीय संवाद और सामाजिक अनुशासन को बढ़ावा देता है
साभार- दोपहर का सामना 10 05 2024

इन दिनों चुनाव का माहौल है। पहले भी चुनावी चर्चा होती थी, लेकिन वही चर्चा अब बहस बनकर सोशल मीडिया पर सिमट आई है। आमने-सामने की चर्चा-परिचर्चा में बहुत हद तक आंखों की शर्म होती थी, लिहाज़ का दायरा होता था, लेकिन सोशल मीडिया ने वह सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। अनजान ही नहीं, जान-पहचान वाले भी बदतमीज़ी और बद-अखलाक़ी से बाज़ नहीं आते। इस बहस में बुज़ुर्ग, महिलाओं या सम्मानित पेशे से आने वाले बुद्धिजीवियों तक को नहीं बख़्शा जाता। बहुत बार धर्म की आड़ में यह किया जाता है। न जाने किस नज़रिए से सुविधानुसार धर्म ख़तरे में आ जाता है और दूसरे धर्मों पर टिप्पणियां की जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों में यह चलन बढ़ा है। ग़ैर-मुस्लिमों को समझाने का काम कई प्रतिष्ठित धर्मगुरु, मोटिवेशनल स्पीकर और बुद्धिजीवी कर रहे हैं। हालांकि धर्म की आड़ में ऐसे सम्मानित लोगों को भी नहीं बख़्शा जाता और उन्हें मुल्ला, नक्सल, लिब्रांडु जैसे नामों से नवाज़ दिया जाता है। मुस्लिम समाज भी ऐसी ही आक्रामकता दिखाता है और ऐसी ही आक्रामकता का शिकार होता है। मुस्लिम समाज भी इस बहस में इस्लाम को ले आता है।

जहां तक रिश्तों और सामाजिकता की बात है, इस्लाम में उसे बड़ा महत्व दिया गया है। इस्लाम एक ऐसा सामाजिक धर्म है जो इंसानी मेलजोल, मानवीय संवाद और सामाजिक अनुशासन को बढ़ावा देता है। यहां यह भी समझना होगा कि मुसलमान नाम रख लेने से ही कोई मुसलमान नहीं हो जाता। असल इस्लाम 'अद्वैतवाद' को मानता है, लोगों से सुसंवाद बनाने को कहता है। जहां तक बाद अद्वैतवाद की है, तो लगभग सभी धर्म रूहानी तौर पर इस से जुड़े हुए हैं। अद्वैतवाद वह दर्शन है जो मानता है, कि ईश्वर न तो एक है और न ही अनेक। इसके द्वारा ईश्वर को अगम, अदृश्य, अकल्पनीय, अलक्षण तथा अवर्णनीय माना जाता है। इस्लाम ही नहीं, इसे हिंदू धर्म भी बारीकी से मानता है। कहा जाता है कि इस दर्शन के आविष्कारक शंकराचार्य हैं। अद्वैतवाद का ब्रह्म सूत्र ही है - अहं ब्रह्मास्मि। इस दर्शन के अनुसार संसार में केवल 'ब्रह्म ही सत्य' है और बाकी संसार मिथ्या है। जीव और ब्रह्म या ईश्वर अलग नहीं हैं। यह संसार ब्रह्म की माया है। संसार में फैले अज्ञान के कारण जीव को ब्रह्म की अनुभूति नहीं हो पाती, जबकि जीव के भीतर स्वयं ब्रह्म का वास है। केवल ब्रह्म के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए इस दर्शन को एकेश्वरवाद कहा गया। यही ईसाई, यहूदी, पारसी, सिख, बौद्ध सहित लगभग सभी धर्मावलंबी मानते हैं।

यह देश हिंदू बहुल देश है। मुसलमानों को यहां सारे अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन राजनीतिक षड्यंत्रों से या तो वह तुष्टिकरण का शिकार है या फिर नफरत का। उसके पूर्वजों का पूरा बलिदान इन्हीं साज़िशों की भेंट चढ़ गया है। अब उसे अपने देशप्रेम का सबूत देना पड़ रहा है। कभी सर जोड़कर, बैठकर मुस्लिम रहनुमाओं ने यह नहीं सोचा कि ऐसा हुआ क्यों, और अगर हो गया है तो उसे सुधारा कैसे जाए। मुस्लिम समाज की आक्रामकता ने मुस्लिम समाज का बहुत नुक़सान किया है। मुस्लिम वही है जिसका आचरण अच्छा हो। अच्छे आचरण को लेकर पैग़ंबर मोहम्मद साहब का कथन है कि, “सच्चा मुस्लिम अपने अच्छे आचरण के माध्यम से उस व्यक्ति का दर्जा प्राप्त करता है जो रात में इबादत करता है और दिन में रोज़ा रखता है।’’ इस्लाम ने हमेशा अपने मानने वालों को प्रेम और नम्रता की शिक्षा दी है। उन्हें कटुता और कठोर व्यवहार से दूर रहने के लिए प्रेरित किया है। लेकिन आज का नौजवान सही इस्लामी शिक्षा से दूर रहकर मुल्ला-मौलवियों और अधकचरे ज्ञान बांटने वाले कथित रहनुमाओं की ज़्यादा सुनता है। क्योंकि बचपन से उसे क़ुरआन पढ़ने को तो कहा जाता है, समझने की बात नहीं की जाती। उन्हें जिन आयतों को आत्मसात करने को कहा गया है, उसे पढ़कर मात्र अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो लिया जाता है। यह ठीक नहीं है।

अच्छा आचरण ईमान की पहचान है। इसलिए मुसलमानों को चाहिए कि वह सामाजिक जीवन और सोशल मीडिया का उपयोग करते वक़्त भी अच्छे व्यवहार और अच्छे आचरण को अपनाएं। धार्मिक बहस-मुबाहसे से परहेज़ करें। हाँ, सकारात्मक चर्चा ज़रूर करें, लेकिन उसमें तर्कों को स्थान दें। दूसरी तरफ़ बैठे हुए सज्जन लोग भी आपका साथ देंगे। आपकी अनर्गल बहस में कोई समझदार ग़ैर-मुस्लिम नहीं पड़ता। लेकिन जहां ज़ुल्म, ज़्यादती और अत्याचार की बात होती है, बिरादरान-ए-वतन साथ खड़े होते हैं। अच्छे और बुरे दोनों तरफ़ हैं। बस उन्हें पहचानकर बुरे को छोड़ अच्छे का साथ दें। ज़ाहिर है ऐसा करते ही अच्छे का साथ अपने आप मिलने लगेगा।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)