Friday, April 26, 2024

न्यूज़ अलर्ट
1) अक्षरा सिंह और अंशुमान राजपूत: भोजपुरी सिनेमा की मिली एक नयी जोड़ी .... 2) भारतीय मूल के मेयर उम्मीदवार लंदन को "अनुभवी सीईओ" की तरह चाहते हैं चलाना.... 3) अक्षय कुमार-टाइगर श्रॉफ की फिल्म का कलेक्शन पहुंचा 50 करोड़ रुपये के पार.... 4) यह कंपनी दे रही ‘दुखी’ होने पर 10 दिन की छुट्टी.... 5) 'अब तो आगे...', DC के खिलाफ जीत के बाद SRH कप्तान पैट कमिंस के बयान ने मचाया तूफान.... 6) गोलीबारी... ईवीएम में तोड़-फोड़ के बाद मणिपुर के 11 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का फैसला.... 7) पीएम मोदी बोले- कांग्रेस ने "टेक सिटी" को "टैंकर सिटी" बनाया, सिद्धारमैया ने किया पलटवार....
......हम सही दिशा में जा रहे हैं ! / सैयद सलमान
Friday, December 18, 2020 - 10:37:03 AM - By सैयद सलमान 

......हम सही दिशा में जा रहे हैं ! / सैयद सलमान
सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों से भारत के रिश्ते प्रगाढ़ होने के दौर में हैं
साभार- दोपहर का सामना 18 12 2020

अतीत में पाकिस्तान को संरक्षण देने वाले सऊदी अरब और यूएई के साथ भारत की सैन्य सहयोग बढ़ाने वाली ख़बरें जब से आनी शुरू हुई हैं तब से पाकिस्तान में बेचैनी का आलम है। सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों से भारत के रिश्ते प्रगाढ़ होने के दौर में हैं। अभी पिछले दिनों रियाद के दौरे पर गए भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवाने ने सऊदी अरब के उच्च सैन्य अधिकारियों के साथ बैठक की। दोनों पक्षों ने सैन्य सहयोग बढ़ाने और आपसी हितों के कार्यो पर वार्ता की। इस बैठक का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि किसी भारतीय सेना प्रमुख की सऊदी अरब और यूएई की यह पहली यात्रा है। इस बात से भला कौन इनकार करेगा कि सऊदी अरब इस्लामिक जगत का मुखिया है और यूएई हमेशा से ही उसका निकट सहयोगी रहा है, ऐसे में सैन्य प्रमुख का इन महत्वपूर्ण मुस्लिम देशों का दौरा भारतीय रक्षा सहयोग का दायरा बढ़ाने के क्रम में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भारत अब क्षेत्रीय शक्ति से ज़्यादा बड़ी भूमिका के लिए ख़ुद को तैयार कर रहा है। इज़रायल के साथ यूएई के संबंधों की बहाली के बाद इस दौरे का महत्व और बढ़ गया है। माना जा रहा है कि अरब जगत में भारत नई भूमिका में आ सकता है। आने वाले दिनों में यूएई और सऊदी अरब की सेना भारत के साथ मिलिट्री एक्सरसाइज़ भी कर सकती हैं।

भारत से आने वाली इन उत्साहवर्धक ख़बरों के बाद से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री वहां विपक्ष के निशाने पर हैं। पाकिस्तान की अवाम भी यूएई और सऊदी अरब में भारतीय आर्मी चीफ़ के भव्य स्वागत को लेकर इमरान खान सरकार की आलोचना कर रही है। यह धारणा ज़ोर पकड़ रही है कि इमरान खान की ग़लत विदेश नीति के कारण सऊदी अरब और यूएई भारत के नज़दीक आ रहे हैं। पाकिस्तानी अख़बार इस बात को याद दिला रहे हैं कि कुछ महीने पहले ही सऊदी ने पाकिस्तान को दिया गया अपना तीन बिलियन डॉलर लोन वापस मांग लिया था। इंतेहा तो यह है कि यूएई ने पाकिस्तानी नागरिकों को वर्क वीज़ा देना बंद कर दिया है। वहां की सरकार कोरोना वायरस और यूएई में बढ़ते अपराधों के पीछे पाकिस्तानी नागरिकों के शामिल होने से नाराज़ है। यूएई ने पाकिस्तान को भारी क़र्ज़ भी दिया हुआ है।

अभी पिछले साल ही जब सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने पाकिस्तान का दौरा किया था तो उनकी पाकिस्तान में ख़ूब आवभगत हुई थी। उनकी लोकप्रियता का यह आलम था कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने यहां तक कह दिया था कि अगर वो पाकिस्तान से चुनाव लड़ जाएं तो कामयाब हो जाएंगे। इस आवभगत और गर्मजोश स्वागत से अभिभूत मोहम्मद बिन सलमान ने तब पाकिस्तानियों को यक़ीन दिलाया था कि कि पाकिस्तानी उन्हें सऊदी अरब में अपना प्रतिनिधि समझें। फिर ऐसा क्या हुआ कि स्थितियां पलट गईं? दरअसल जबसे कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया गया है, पाकिस्तान लगातार इस मामले पर इस्लामिक देशों के संगठन के विदेश मंत्रियों का सत्र बुलाने की कोशिश कर रहा है लेकिन उसे अब तक इसमें कामयाबी नहीं मिल सकी है।

मुस्लिम देशों के ज़िम्मेदार संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक को-ऑपरेशन (ओआईसी) के सबसे बड़े कर्ताधर्ता सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान हैं और उन्होंने भी पाकिस्तान के कश्मीर राग का समर्थन नहीं किया। ज़ाहिर सी बात थी, पाकिस्तान में खलबली मचनी ही थी। यहां तक कि उसके विदेश मंत्री ने एक निजी न्यूज़ चैनल के माध्यम से पब्लिक प्लेटफ़ॉर्म पर सऊदी अरब की नीति पर खुल कर मायूसी ज़ाहिर की थी। मायूसी को समझने के लिए उनके बयान पर ग़ौर किया जा सकता है जिसमें पाकिस्तान की कुंठा और हताशा साफ़ झलकती है। पहले तो उन्होंने सऊदी अरब और पाकिस्तान के बहुत अच्छे संबंधों को याद दिलाते हुए उसे इज़्ज़त और मोहब्बत का रिश्ता बताया। फिर भावनात्मक संबंधों का हवाला देते हुए कहा कि हर पाकिस्तानी मक्का और मदीना की सुरक्षा के लिए जान देने को तैयार है। उन्होंने आह्वान किया कि पाकिस्तान का मुसलमान और वो पाकिस्तानी जो आपके लिए लड़ने मरने के लिए तैयार हैं, आज आप से कह रहा है कि आप कश्मीर के मामले पर नेतृत्व की भूमिका निभाएं। अगर न किया तो पाकिस्तान अब और इंतज़ार नहीं कर सकता, उसे आगे बढ़ना होगा, सऊदी अरब के साथ या उसके बिना। क्या इस तरह के बयानों से उम्मीद की जा सकती है कि पाकिस्तान अपने पुराने दोस्तों को ख़ुश रख पायेगा? यह तो उन देशों को ढंके-छुपे लफ़्ज़ों में धमकी देना हुआ।

इन बातों के पीछे छुपा एक कारण है। दरअसल दिसंबर २०१९ में उस समय के मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद की गतिविधियां सऊदी अरब और यूएई से अलग चल रही थीं और वह मुस्लिम देशों के नए अगुआ बनने के लिए हाथ पांव मार रहे थे। उनकी पहल पर कुआलालंपुर में एक शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ था जिसमें पहले इमरान खान ने भाग लेने की सहमति दर्शाई थी। इस सम्मेलन में तुर्की, इंडोनेशिया, क़तर और पाकिस्तान समेत कई मुस्लिम देशों के नेताओं को बुलाया गया था और ऐसा लग रहा था कि ओआईसी से हट कर एक विचार रखने वाले मुस्लिम देशों का एक नया मंच उभर रहा है जिसमें सऊदी अरब का केंद्रीय स्थान नहीं होगा। पाकिस्तान ने शुरुआत में तो इस नए प्लेटफॉर्म का समर्थन किया लेकिन फिर अचानक इमरान ख़ान ने बैठक में भाग लेने से मना कर दिया था। कारण था सऊदी अरब का दबाव, जो नहीं चाहता था कि पाकिस्तान जैसा महत्वपूर्ण मुस्लिम देश अपने राजनीतिक, राजनयिक और सैन्य ताकत के साथ किसी और पलड़े में चला जाए। अरब देशों की नज़र में पाकिस्तान की साख़ को यहीं से बट्टा लगना शुरू हुआ और भारत के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा।

ऐसे में सऊदी अरब और उस से प्रभावित खाड़ी देशों में ख़ुद की कम होती इज़्ज़त और भारत को मिल रहे सम्मान को पाकिस्तान के लिए पचाना मुश्किल होता जा रहा है। भारत के साथ अरब व्यापार पाकिस्तान की तुलना में बहुत अधिक है। भारत का धन संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी बाजारों में फैला हुआ है और वहां भारतीय कारीगरों का खुले दिल से स्वागत किया जाता है। केवल नकारात्मक पक्ष यह था कि अब तक उनके बीच कोई रक्षा सहयोग नहीं था। अब संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय सेना प्रमुख की यात्रा ने रक्षा सहयोग को बढ़ाने की संभावना पर चिंतन किया है और संयुक्त रक्षा उत्पादन समझौतों पर सऊदी अरब के साथ बातचीत हुई है। पाकिस्तान को लगता है कि एक तरफ़ अरब जगत को रक्षा के लिए अमेरिकी उपकरणों की ज़रूरत है और दूसरी तरफ़ वह भारत के साथ रिश्तों को नए आयाम देने की कोशिश में है। पाकिस्तानी अख़बार तो मुस्लिम देशों की खिंचाई करते हुए यहां तक लिखते हैं कि अरब दुनिया ने पाकिस्तान, ईरान और तुर्कों की रक्षा सेनाओं को पूरी तरह से भुला दिया है और उन्हें पीछे धकेल दिया है। वहां के पत्रकार बुद्धिजीवी, विपक्ष और बड़ी संख्या में आमजनों का मानना है कि अरब जगत ने पाकिस्तान के बजाय भारत की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया है।

अगर ऐसा है तो यह समझने की ज़रूरत है कि पाकिस्तान के सभी कूटनीतिक, भावनात्मक और राजनैतिक पैंतरे नाकाम रहे हैं। पाकिस्तान को यह सोचना चाहिए कि दूसरे किसी देश की विदेश नीति को वह तय नहीं कर सकता। उसे ख़ुद अपनी विदेश नीति के बारे में गहराई से सोचने की ज़रूरत है। उसे समझना चाहिए कि उसके अब तक के मददगार इस्लामी मुल्कों से जो कठिन वक़्तों में संबंध रहे हैं, उनमें इज़ाफ़ा हुआ है या कमी आई है। उसने आतंकवाद को बढ़ावा देकर, अमेरिका के दुश्मन चीन से नज़दीकी बढ़ाकर और अरब मुल्कों को कमतर आंक कर भयंकर गलती की है। ऐसे में अपने परंपरागत शत्रु भारत की राह उसने ख़ुद आसान कर दी है। अरब देश भी एक कमज़ोर, खोखले और दग़ाबाज़ दोस्त पाकिस्तान के बजाय विशाल, सशक्त और वफ़ादार देश के रूप में भारत को प्राथमिकता शायद इसी लिए दे रहे हैं। अरब देशों के साथ भारत की बढ़ती नज़दीकी अगर पाकिस्तान को खल रही है तो यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं।



(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में विजिटिंग फैकेल्टी हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)