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संघर्ष का दूसरा नाम है स्त्री / बिंदु भंडारी
Wednesday, March 8, 2017 - 10:27:56 AM - By बिंदु भंडारी

संघर्ष का दूसरा नाम है स्त्री / बिंदु भंडारी
तेरे वजूद की समय को भी तलाश है......
सबसे पहले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की सभी को शुभकामना। आज की तारीख में भले ही हम महिलाओं के सम्मान की बात करें, उनके चांद पर पहुंचने की बात करें या फिर महिलाओं को उन का दर्जा देने की बात कहें, इतना ही नहीं हर जगह नारे लगाते रहें 'नारी शक्ति जिंदाबाद-नारी शक्ति जिंदाबाद' इत्यादि इत्यादि लेकिन क्या सच में ऐसा है ? देखा गया है कि जब जब समय आता है तब हकीकत में किसी महिला को उसका हक दिलाने या देने की बात आती है तो यह सारी बातें सिर्फ और सिर्फ एक कहावत या जुमला ही लगता है जिनका हकीकत से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं होता। मैं यहां बात कर रही हूं राजनैतिक दलों में महिलाओं के हक की, उनके समर्पण की और उनकी उम्मीदों की। हर राजनीतिक पार्टी में महिलाओं की भागीदारी नजर आती है खासकर स्थानीय निकाय चुनाव में जब से महिलाओं को 50% का आरक्षण मिला है महिलाओं ने और भी पर चढ़ कर हिस्सा लेना शुरु किया है और उन्होंने अपने कार्यो द्वारा, अपनी निष्ठा द्वारा अपना सम्मानजनक स्थान भी बनाया है और सामाजिक कार्यों में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया है अपना वर्चस्व बनाया है। क्योंकि घरों में दिन के समय महिलाएं होती हैं, उनसे मिलकर उनके सुख-दुख जानना, उनके विचार जानना उनकी समस्याओं को जानना और समझना एक महिला ही कर सकती है और इस तरह का सामाजिक कार्य एक कार्य दक्ष महिला ही कर सकती है। जहां एक पुरुष कार्यकर्ता लोगों के घर नहीं पहुंच पाता था, आज महिलाओं ने अपनी कर्तव्य दक्षता और सूझ बूझ से प्रभाग में घर-घर जाकर लोगों में समाज के और अपने पार्टी के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया है। कुछ सामाजिक कार्य करने वाली महिलाओ के घर पर नौकर -चाकर होते हैं और वे अपना समय सामाजिक कार्यों में लगाती हैं पर कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जिनके घर कोई नौकर नहीं होते हैं फिर भी वो सामाजिक कार्यों से जुडी होती हैं और पूरी निष्ठा के साथ ये सोचकर कि समाज के प्रति ये मेरा कर्त्तव्य है, कि मैं मेरे समाज को एक अछि दिशा की ओर ले जाने में अपना सहकार्य दूँ, अपनी घर गृहस्थी की देखभाल करके अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए या फिर यूँ कहें कि उनके यानि अपने परिवार के समय में से समय चुराकर अपने सामाजिक दायित्व को निभाती हैं। संघर्ष ही उसकी पहचान बन गयी है।

हमें महिला होने पर गर्व होना चाहिए, हमें खुद को खुशनसीब समझना चाहिए क्योंकि एक समय था जब महिलाओं को घर से बाहर तक नहीं निकले निकलने दिया जाता था और पढ़ना लिखना तो जैसे स्वप्न ही था। लेकिन सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं में शिक्षा के प्रति जागरुकता फैलाई और उन्हें पढ़ने लिखने के लिए प्रेरित किया और उन्हें सिक्षा का महत्व बताया। उनके द्वारा आरंभ किए गए इस पवित्र शिक्षा के अभियान से आज हम महिलाओं को शिक्षा पाने का अधिकार मिला है और आज महिलाएं पढ़ लिखकर अपने बलबूते पर अपने मुताबिक जिंदगी जी रही है। और इस सम्मान के साथ जीने का हौसला हमें आदरणीय प्रेरणास्रोत सवित्रीबाई फुले जी द्वारा ही मिला है। आज यदि हम स्थिति देखते हैं तो महिलाएं पुरुषों से किसी भी मुकाबले किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं बल्कि उनसे दो कदम आगे ही नज़र आएंगी। यदि हम दसवीं और बारहवीं कक्षा के नतीजे देखें तो लड़कियां लड़कों के मुकाबले ज्यादा अच्छे मार्क्स लेकर अच्छे प्रतिशत से पास होती हैं और अपने माता पिता का गौरव बढाती हैं। आज बड़ी कंपनियां हो, बैंक हो या हॉस्पिटल या होटल्स हो या फिर कोई सरकारी दफ्तर हो महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी कर्तव्य निष्ठा के कारण आगे बढ़ती जा रही हैं और हर क्षेत्र में उनका योगदान सराहनीय है। आज महिला दिन के उपलक्ष्य में मैं रानी लक्ष्मी बाई सावित्रीबाई फुले इंदिरा गांधी कल्पना चावला आदि वीरांगनाओं को याद करते हुए मेरी बहनों से कहूंगी कि हम शपथ लें कि कैसी भी परिस्थिति हो हम हार नहीं मानेंगी और अपने कर्त्तव्य और अधिकार का पालन प्रेम और निष्ठा के साथ करेंगी। मैं मेरी प्यारी माताओं और बहनों के लिए फिल्म 'पिंक' में तनवीर गाज़ी की रचना जो आज के दौर की माता बहनों बेटियों के लिए एक प्रेरणादाई कविता है वह मैं साभार आप लोगों के सामने रखती हूँ,

तू खुद की खोज में निकल।
तू किसलिये हताश है, तू चल ,
तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।

जो तुझसे लिपटीं बेड़ियाँ, समझ ना इनको वस्त्र तू ,
ये बेड़ियाँ पिघाल के, बना ले इनको शस्त्र तू ,

तू खुद की खोज में निकल।
तू किसलिये हताश है, तू चल ,
तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।

चरित्र जब पवित्र है , तो क्यों है ये दशा तेरी ,
ये पापियों को हक़ नहीं , की ले परीक्षा तेरी ,

तू खुद की खोज में निकल।
तू किसलिये हताश है, तू चल ,
तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।

जला के भस्म कर उसे, जो क्रूरता का जाल है ,
तू आरती की लौं नहीं , तू क्रोध का मशाल है ,

तू खुद की खोज में निकल।
तू किसलिये हताश है, तू चल ,
तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।

चुनर उड़ा के ध्वज बना , गगन भी कॅपकॅपायेगा ,
अगर तेरी चुनर गिरी, एक भूकम्प आयेगा ,

तू खुद की खोज में निकल।
तू किसलिये हताश है, तू चल ,
तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।



(लेखिका महिला काँग्रेस से जुड़ी सक्रिय नेत्री हैं )