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फिर जागा मुस्लिम आरक्षण का जिन्न / सैयद सलमान
Friday, February 23, 2024 - 11:02:34 AM - By सैयद सलमान

फिर जागा मुस्लिम आरक्षण का जिन्न / सैयद सलमान
मुस्लिम आरक्षण की मांग ज़ोर पकड़ रही है
साभार - दोपहर का सामना 23 02 2024

मराठा आरक्षण पर जारी राजनीति के बीच मुस्लिम आरक्षण का जिन्न एक बार फिर बाहर आया है। महाराष्ट्र विधानसभा में सर्वसम्मति से मराठा आरक्षण विधेयक को मंज़ूरी मिल गई है। अब महाराष्ट्र में मराठा समाज को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में १० प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। हालांकि मराठा आंदोलन का नेतृत्व करने वाले मनोज जरांगे इस विधेयक से बिलकुल ख़ुश नहीं हैं। उन्होंने अपनी मांग दोहराई है कि राज्य सरकार कुनबी मराठों के ‘ख़ून के रिश्तों’ पर अपनी मसौदा अधिसूचना को क़ानून में बदले। महाराष्ट्र में चार दशक पुराने मराठा आरक्षण के दौरान मराठा समुदाय को तीन बार आरक्षण दिया गया है। इस से पहले के दिए गए आरक्षण अदालत में टिक नहीं सके। इस बार भी मराठा आरक्षण आंदोलन के नेताओं को लग रहा है कि उनके साथ धोखा हुआ है और यह आरक्षण भी अदालत में नहीं टिकेगा। हां, यह ज़रूर हुआ कि हर बार आरक्षण का दायरा छोटा होता जा रहा है। २०१४ में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार ने मराठा समाज को १६ फ़ीसदी आरक्षण दिया था और २०१८ में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नौकरियों में १२ फ़ीसदी और शिक्षा में १३ फ़ीसदी आरक्षण दिया था। वह वर्तमान सरकार में भी शामिल हैं और उपमुख्यमंत्री भी हैं, लेकिन इस बार क्रेडिट कोई और लेने की फ़िराक़ में है।

इतनी पेचीदगियां मराठा आरक्षण को लेकर हैं, उसके बावजूद मुस्लिम आरक्षण की मांग भी ज़ोर पकड़ रही है। विधानसभा परिसर में मराठा आरक्षण बिल पास होने के तुरंत बाद, सपा विधायक अबू आसिम आज़मी ने मुस्लिम आरक्षण अध्यादेश फाड़ते हुए मुसलमानों के साथ अन्याय किये जाने का राज्य सरकार पर आरोप लगाया। अबू आसिम आज़मी और उनके साथी विधायक रईस शेख ने विधान भवन परिसर में बैनर लहराकर सरकार के ख़िलाफ़ अपना विरोध जताया। एक अनुमान के मुताबिक़ राज्य में मराठा समाज की आबादी ३२ फ़ीसदी है, जबकि मुसलमानों की संख्या १० फ़ीसदी से कुछ अधिक है। सपा की मांग है कि महाराष्ट्र सरकार मराठा आरक्षण के साथ-साथ मुसलमानों को भी ५ फ़ीसदी आरक्षण दे और इसके लिए ज़रूरी विधेयक भी ले आए। अब यह तय हो गया है कि मुस्लिम नेता मुस्लिम आरक्षण को लेकर नई रणनीति तय करेंगे और इस मांग को लेकर संघर्ष शुरू करेंगे। फ़िलहाल यह मुद्दा सपा ने उठाया है। हालांकि एमआईएम के पूर्व विधायक वारिस पठान भी इस मामले में कूद पड़े हैं और अबू आसिम आज़मी के सुर में सुर मिलाया है कि मुस्लिम समाज की मांग ग़लत नहीं है। मुस्लिम नेता ५ फ़ीसदी आरक्षण शिक्षा के लिए ही मांग रहे हैं। इस मांग को बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी जायज़ माना है, तो फिर महाराष्ट्र सरकार इसे लागू क्यों नही करती? हो सकता है आने वाले दिनों में कांग्रेस के मुस्लिम नेता भी इस मुद्दे पर मुखर हों। आख़िरकार, यह मुस्लिम वोट हासिल करने का सवाल है।

२०१४ में, मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मुसलमानों के लिए ५ प्रतिशत और मराठों के लिए १६ प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी। लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी और शिक्षा में मुसलमानों के लिए ५ प्रतिशत आरक्षण को ही जारी रखा। यानी कोर्ट ने शिक्षा में आरक्षण देने की इजाज़त तो दी, लेकिन रोज़गार में नहीं। इसकी आड़ में क़ानून नहीं बन सका। अब तीन पार्टियों की सरकार है। तीनों के बीच तालमेल का आभाव है। धोखे-फ़रेब से दो दलों ने अपनी-अपनी पार्टियों को तोड़कर तीसरे दल के साथ सरकार बनाई है। सबसे ज़्यादा विधायकों वाली पार्टी का नेता जो कभी राज्य का मुख्यमंत्री था अब उसे उपमुख्यमंत्री बनकर संतोष करना पड़ रहा है। इसी से साफ़ हो जाता है कि यह सरकार मजबूरी में, मजबूरों द्वारा बनाई गई है। वह मराठा समाज को सपने दिखा सकती है और उन्हें संतुष्ट नहीं कर सकती। फिर हाशिये पर पड़े मुसलमानों के लिए क्या ही सोच पाएगी। मुसलमान धर्म के आधार पर नहीं बल्कि पिछड़ेपन के आधार पर ५ प्रतिशत शिक्षा में आरक्षण मांग रहे हैं। मुस्लिम आरक्षण के नाम पर आंदोलन की बात हो रही है। आंदोलन से मुसलमानों ने अब ज़्यादातर हाथ पीछे खींच लिए हैं। सरकार से उन्हें उम्मीद है नहीं। वह दोराहे पर खड़ा है। आंदोलन करता है तो फ़ायदा कम, नुक़सान का ख़तरा ज़्यादा है। ढेर सारे केस में उन्हें फंसने का डर होता है। सरकारें मुसलमानों के आंदोलन को कुचलने का हुनर सीख गई हैं। मुसलमान अक्सर आंदोलन के दौरान उग्र हो जाते हैं। ऐसे में अबू आसिम आज़मी हों या कांग्रेस-एमआईएम के नेता, उन्हें फूँक-फूँक कर क़दम रखना होगा, अन्यथा सरकार में शामिल तीनों दल 'मुस्लिम वोट बैंक' की राजनीति बताकर इस आंदोलन के जिन्न को फिर बोतल में बंद कर देंगे।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)