Retesh Narain
बात है साल 2001 की.
पटना से एक लड़का ख्वाबों की टोकरी सजाये हुए मुंबई आया.मुंबई यानि सिनेमा के रुपहले परदे पर चमकने की ख्वाहिश थी, पढ़ा लिखा और खानदानी शख्सियत से लबरेज़, चेहरे में कशिश थी और आंखों में कुछ कर गुजरने का जुनून साफ झलकता था.
उस दौर में फिल्मो के अलावा विज्ञापन फ़िल्में, म्यूजिक एल्बम और चैनल प्रोमो भी बना करते थे,जिसकी वजह से नयी प्रतिभाओं को कामम पाने में आसानी हो गयी थी. लेकिन फिर भी सिनेमा की दुनिया ही ऐसी है, जो पहचान बनाने मात्र के लिए ही संघर्ष म नाको चने चबवा देती है.
इस लडके ने संघर्ष शुरू किया,जो कठिन था,लेकिन इस लडके में जूनून बहुत था, वो मेहनती था, करीब दो साल का लंम्बा संघर्ष...फिर उसे पद्मिनी कोल्हापुरे के एक सीरियल में छोटा सा रोल मिला, ये लड़का दिमाग से शातिर था,उसने संमंझ लिया था की,अभिनय की दुनियां में नांम कामना उतना ही मुश्किल है,जितना की गंगा के पानी से खेतों की सिचाई करना.
उसने बड़ी समझदारी से खेल खेला...क्युकी उसे वापस हार कर घर नहीं लौटना था,पुरे ख़ानदान म जग हंसाई नहीं करवाना था, अब वो जहाँ जाता,हर जगह अपने रिश्ते बनाता गया,अपनी बतकही से किसी को भी अपना बना लेता था,नतीजा ये हुआ की मॉडलिंग इंडस्ट्री में बड़े-बड़े नामों से उसकी दोस्ती हो गई.
एक बार उसके एक मित्र एक शैम्पू के विज्ञापन फिल्म पर काम कर रहे थे, जिसमें उन्हें चढ़ती जवानी फेम निगार खान को कास्ट करना था,मित्र ने उस लड़के को जिम्मा दे दिया कि वह निगार को कोऑर्डिनेट करे,काम पूरा हुआ और उस लडके के हिस्से में फीस के नाम पर सोलह हजार रुपये आए,वही पहला मोड़ था — जब उसे अहसास हुआ कि सिर्फ एक्टिंग के लिए संघर्ष करना काफी नहीं, और रास्ते भी हैं सफलता के.
उसने कुछ और विज्ञापन फिल्मो और सीरियल में काम किया,उसे समझ आ गया था,बहुत कठिन है डगर एक्टिंग की और फिर एक्टिंग की दुनिया को धीरे-धीरे अलविदा कहा और फैशन इंडस्ट्री के स्टाइलिंग की दुनियां में कदम रखा.
उसने जो रिश्ते बनाये थे,वो अब भुनाने लगा... काम मिलना आसान होने लगा, धुन का पक्का था और मेहनती भी तो स्टाइलिंग में उसका हुनर चमका, उसका हुनर किंग फिशर जैसे ब्रांड तक पहुंच गया, जहाँ पहुंचना,लोगों के लिए एक सपना ही रह जाता है.
उस लडके का नाम फैशन की दुनियां में धुमंकेतु की तरह उभरा और देखते ही देखते वह सिर्फ स्टाइलिस्ट ही नहीं रहा. बड़े ब्रांड के लिए क्रिएटिव डायरेक्शन भी करने लगा.
उसने अगला कदम रखा सेट डिजाइनिंग की दुनियां में,वजह थी उसे रुकना नहीं था,उसे खुद की अपनी पहचान कायम करनी थी,मां और पिता से गहरा लगाव था,और वो इस जूनून में आगे बढ़ता जा रहा था की,माँ पिता दुनियां को गर्व से कह सकें,की ये मेरी औलाद है.
अब ये पटना का छोरा, विज्ञापन फिल्मो,म्यूजिक एल्बम और सीरियल्स के लिए सेट तैयार करने लगा,बड़ी बड़ी फिल्मो के प्रोमो भी बनाने लगा.
ऑन-स्क्रीन स्टार बनने का सपना भले अधूरा रह गया हो, लेकिन पर्दे के पीछे उसने वह खुद को स्टार स्थापित कर लिया था.
आज अब वो लड़का म्यूजिक एल्बम डायरेक्ट करता है, प्रोमो बनाता है,धरावाहिक के लिए सेट बनाता है और अच्छे ब्रांड्स के लिए स्टाइलिंग भी करता है.आज उसके पास घर है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है,और सबसे बढ़कर, खुद पर गर्व करने की वजह भी.
अब वह फैशन पर आधारित एक फिल्म डायरेक्ट करने की तैयारी कर रहा है. और उस लड़के को आज हम सब रितेश नारायण के नाम से जानते है.
रितेश की कहानी एक सीख है — जीवन में लक्ष्य तय करो, लेकिन राहें बदलने से मत डरना। मंजिल तक पहुंचने के लिए जरूरी नहीं कि वही रास्ता सही हो जिस पर चलना शुरू किया था। कभी-कभी दूसरी राह पकड़कर, पहले खुद को स्थापित करना जरूरी होता है। क्योकि सपनों की कोई उम्र नहीं होती,सपने कभी भी पुरे किये जा सकते है, लेकिन खुद को स्थापित करने की उम्र होती है,और यह उम्र अगर फिसल जाए तो बहुत कुछ खो जाता है.