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....तो खोखला हो जाएगा देश ! / सैयद सलमान
Friday, September 25, 2020 1:37:34 AM - By सैयद सलमान

अवसाद से लेकर आत्महत्या तक के कारणों का ज़िम्मेदार अक्सर मादक पदार्थों के सेवन को माना गया है
​साभार- दोपहर का सामना 25 09 2020 ​

नशा एक ऐसा शब्द है, जिसका ज़िक्र होते ही आंखों के सामने कई बुराइयां आ जाती हैं। आजकल नशा संबंधी ख़बरें ही चारों तरफ़ छाई हुई हैं। गली-चौराहे और फ़िल्म इंडस्ट्री से लेकर संसद के गलियारों तक इसी विषय पर बहस चल रही है। अगर सामाजिक बुराई और इसे जड़ से उखाड़ने के लिए यह बहस हो तो ठीक है, लेकिन केवल दोषारोपण और अपने हित साधने तक इस विषय को उठाने वाले ज़्यादा सक्रिय हैं। एक बात स्पष्ट है कि नशा वह ख़्वाह किसी भी सूरत में हो ग़लत है। इस्लाम सहित अनेक धर्मों ने भी इसे ग़लत क़रार देकर नशे से दूर रहने की बात कही है। मादक पदार्थों की लत की वास्तविकता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह शरीर में सैकड़ों बीमारियों का कारण बनता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए ख़तरनाक भी होता है। शराब, तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, चरस, गांजा, मारिजुआना जैसे नशे के कारण कई रोग होते है। कुछ तो ऐसी बीमारियां हैं जो मौत का कारण भी बन जाती हैं। अवसाद से लेकर आत्महत्या तक के कारणों का ज़िम्मेदार अक्सर मादक पदार्थों के सेवन को माना गया है।

वास्तव में नशा एक धीमा ज़हर है, और यह मानव शरीर को खोखला बनाता है, अंगों को कमज़ोर करता है और तेज़ी से मौत की ओर ले जाता है। शरीर और ताक़त को सबसे ज़्यादा नुक़सान नशे के इस्तेमाल से होता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग का प्रभाव इतना विनाशकारी होता है कि उस से पूरा परिवार प्रभावित होता है। नशे की स्थिति में मानव जीवन और और गरिमा का कोई महत्व नहीं रह जाता। नशेड़ी व्यक्ति न तो परिवार के साथ बैठने में सक्षम होता और न ही वह सचेत रूप से बात कर सकने की स्थिति में होता है। नशा करने वाले लोग एक प्रकार से शैतान के घिनौने पंजे में फंस जाते हैं। शायद इसी बुनियाद पर नशीले पदार्थों का सेवन इस्लामी शरीयत के अनुसार हराम क़रार पाया है। नशे की मनाही क़ुरआन और सुन्नत से साबित होती है, और सभी मकतब-ए-फ़िक्र के उलेमा इस बात से सहमत हैं कि सभी नशीले पदार्थों का कम मात्रा में उपयोग भी हराम है। हदीस मुस्लिम के मुताबिक पैग़ंबर मोहम्मद साहब का इरशाद है कि, 'हर नशीला पदार्थ ख़ुमारी लिए होता है इसलिए हर नशीला पदार्थ हराम है।' इसी तरह एक दूसरी रवायत में आया है कि, मोहम्मद साहब ने फ़रमाया, 'और नशीले पदार्थों का उपयोग न करें।' क़ुरआन में भी नशे को लेकर नकारात्मक टिप्पणी मिलती है। क़ुरआन में पैग़ंबर से मुख़ातिब होकर अल्लाह का इरशाद है, “लोग आपसे शराब और जुए के बारे में पूछते हैं, तो कह दें कि इन दोनों में बहुत बड़ा गुनाह है।” (अल-क़ुरआन २:२१९) एक अन्य आयत के मुताबिक़ नशा करने वालों की दुआ क़ुबूल नहीं होती है। क़ुरआन में एक जगह उल्लेख किया गया है कि, “ऐ ईमान वालो, अगर तुम नशे की हालत में हो तो नमाज़ मत पढ़ो जब तक तुम ये न जानते हो कि तुम क्या कह रहे हो।” (अल-क़ुरआन ४:४३) क़ुरआन शरीफ़ की इस आयत से ये ज्ञात होता है कि जब इंसान कोई नशा करता है तो उसे ये ध्यान नहीं होता हैं कि वह क्या कह रहा है। नशे की स्थिति में इंसान का उसकी ज़ुबान पर क़ाबू नहीं रहता और ज़ुबान पर क़ाबू इसीलिए नहीं रहता क्योंकि दिमाग़ पर क़ाबू नहीं होता। जब इंसान का उसके दिमाग पर क़ाबू ही नहीं रहा तो उसे यह कैसे मालूम होगा कि वह क्या बोल रहा है या क्या कर रहा है? इसिलिए ऐसी मान्यता है कि ज़्यादातर गुनाह शराब या नशीले पदार्थ के सेवन के बाद किये जाते हैं।

इस्लाम अपने अनुयायियों से स्पष्ट रूप से कहता है कि वे नशाख़ोरी से दूर रहें, क्योंकि इससे नफ़्स का जिहाद भी कमज़ोर होता है। नशे में इंसान अपने आप को भूल जाता है और अपने नफ़्स पर भी क़ाबू नहीं रख पाता। इसके अलावा जो क़ौम नशे की आदी होती है वो धीरे-धीरे गर्त में धंसती चली जाती है। नशा शरीर, दिमाग़ और समाज तीनों के लिए नुक़सानदेह है। दरअसल नशा वह होता है जिसके कारण इंसान अपने दिल-ओ-दिमाग़ और शरीर पर अपना नियंत्रण खो दे। कुछ इस्लाम के मानने वाले क़ुरआन और हदीस के हवाले से कुतर्क करते हैं कि सिर्फ़ शराब को हराम कहा गया है। इस कुतर्क के जवाब में यह समझना होगा कि उस वक़्त शराब को बहुत बुरा और नशे को हराम इसलिए कहा गया क्योंकि तब शराब के अतिरिक्त अन्य नशीली चीज़ें प्रचलन में नहीं थीं। शराब तो नशे का मात्र एक कारक है। इस्लाम नशे जैसे विषय को वृहद रूप में देखता है। इस्लाम के अनुसार नशा वह भी है जो इंसान को दीवाना, पागल और बेसुध कर दे। नशा शराब और ड्रग्स के अलावा भी बहुत सी चीज़ों से आता है जैसे दौलत, सत्ता, हुस्न या ख़ुद की किसी भी ऐसी ख़ासियत जिसके कारण इंसान को घमंड हो जाए और वह होशोहवाश पर नियंत्रण न रख पाए। यानि ग़ुरूर भी एक प्रकार का नशा है और इस्लाम घमंड, ग़ुरूर और तकब्बुर से भी बचने की सीख देता है। अक्सर लोग पूछते हैं, क्या सिगरेट भी मना है क्या तंबाकू और गुटखा भी मना है? तो याद रखें जिस चीज़ से नशा हो या इंसान के शरीर के लिए जान के लिए घातक हो वो सब इस्लाम के नियम से मना है। मुसलमानों को यह समझना होगा कि नशे को हराम कहने के पीछे अनेक आध्यात्मिक कारण हैं।

शराब के अलावा नए नशीले पदार्थों के बाज़ार में आने के बाद मुफ़्ती हज़रात को स्मैक, चरस, अफ़ीम के नशे को भी हराम घोषित कर देना चाहिए। आखिर मांगे जाने पर ट्रिपल तलाक़, विरासत, शादी-ब्याह जैसे मामलों पर फ़तवे तो दिए ही जाते हैं तो फिर समाज को खोखला करने वाले नशे और आतंकवाद के ख़िलाफ़ जितना भी हो सके फ़तवा आते रहना चाहिए ताकि नई पीढ़ी में जागरूकता आए। नशा करने वाले नशे से बचें। नशा करने वालों के लिए सच्ची तौबा का हुक्म है। हुकूमत का भी फ़र्ज़ बनता है कि अवाम को नशे से बचाए। ड्रग्स जैसे नशे के ठिकानों पर ताला लगाने की ज़रूरत है। ड्रग्स मामले में अगर किसी मुस्लिम का नाम सामने आता है तो कोई ज़रूरत नहीं हमदर्दी दिखाने की। जैसे अजमल क़साब के मामले में मुसलमानों ने निर्णय लिया था कि उसे देश की किसी भी क़ब्रस्तान में दफ़्न करने की इजाज़त नहीं देंगे उसी तर्ज़ पर नशे के कारोबार में लिप्त किसी भी मुसलमान का किसी भी रूप में समर्थन नहीं करना ही इस्लामी नज़रिये से उचित होगा। जो व्यक्ति क़ुरआन और हदीस के ख़िलाफ़ जाकर नशे का कारोबार करे, नशा करे, औरों को नशेड़ी बनाए और आने वाली पीढ़ियों को बर्बाद करे उसके प्रति आख़िर किसी प्रकार की सहानुभूति का प्रदर्शन किस आधार पर किया जाए? हाँ अगर किसी को ग़लत फंसाया जा रहा हो तो बात अलग है।

आज समाज से मादक पदार्थों की लत को मिटाने के लिए गंभीर होने की ज़रुरत है। फिल्म या टीवी इंडस्ट्री के कुछ बड़े नाम अगर नशे का सेवन करते हैं तो उनका अनुसरण करना मूर्खता ही कहा जाएगा। जब निराश और बेरोज़गार युवा अवसाद के कारण नशे के आदी हो जाते हैं, तो उन्हें विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से योग्य परामर्श दिया जाना चाहिए। उनकी योग्य काउंसिलिंग की जानी चाहिए। युवा पीढ़ी को इस बुराई से छुटकारा पाने के लिए कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है क्योंकि वह राष्ट्र की बहुमूल्य संपत्ति हैं जिसमें राष्ट्र का उज्ज्वल भविष्य निहित है। इसी तरह अभिभावकों का भी यह कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों पर नज़र रखें और बच्चों को बुरी आदतों से बचाएं। उन्हें ड्रग्स का इस्तेमाल करने से रोकें ताकि बच्चे ड्रग्स के आदी न बनें। यह बात तो शीशे की तरह साफ़ है कि ड्रग्स मानव स्वास्थ्य और बुद्धि दोनों को प्रभावित करता है। नशा शरीर और दिमाग़ को नष्ट कर देता है। सर्वशक्तिमान ईश्वर ने बुद्धि और समझ से इंसान को नवाज़ा है। अच्छा स्वास्थ्य और सद्‌बुद्धि मनुष्य के लिए सबसे अच्छा वरदान है। इसकी रक्षा करना हर एक की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है। नशे के खेल से दूर रहना और नशे को समाप्त करना नई पीढ़ी की प्राथमिकता में शुमार होना चाहिए वरना नशा न सिर्फ़ समाज बल्कि पूरे देश को खोखला करके रख देगा।