सारी अटकलों पर विराम लगाते हुए अंततः ब्रिटिश पत्रिका टाइम ने अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप को साल 2016 के लिए 'टाइम पर्सन ऑफ द ईयर' चुन लिया। नरेंद्र मोदी ऑनलाइन पोल में आगे थे, लेकिन फैसला ट्रम्प के पक्ष में आया। टाइम पत्रिका ने लिखा है कि इस साल डोनाल्ड ट्रंप को पर्सन ऑफ द ईयर चुन गया क्योंकि उन्होंने याद दिलाया कि डेमागॉजी (जनभावनाओं का दोहन करने वाली भाषणबाजी) निराशा पर पलती है और कोई भी सच उतना ही शक्तिशाली होता जितना कि उसे बोलने वाली की विश्वसनीयता होती है। पत्रिका के अनुसार ट्रंप को उन छिपे हुए मतदाताओं के गुस्से और डर को मुख्य धारा में लाकर उन्हें शक्ति देने के लिए चुना गया है। डोनाल्ड ट्रंप को बीते हुए कल की राजनीतिक संस्कृति को नष्ट करके आने वाले कल की राजनीतिक संस्कृति गढ़ने के लिए चुना गया है। टाइम द्वारा बताई गई इस वजह से इतर, एक सच यह भी है कि डोनाल्ड ट्रंप ने उस मुल्क के राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की है, जिसकी नीतियों का असर पूरी दुनिया पर पड़ता है।
1998 में हुए पहले ऑनलाइन पोल में, पहलवान व समाजसेवी मिक फोले 50 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर जीते थे। मगर उन्हें पोल से हटा दिया गया और बिल क्लिंटन और केन स्टार को यह खिताब दे दिया गया। इस बार नरेंद्र मोदी के साथ भी ऐसा ही हुआ। असल में ऑनलाइन पोल को संबंधित प्रतियोगी के फैन्स के निर्णय के रूप में देखा जाता है। इसे भावनात्मक लगाव का नतीजा भी माना जाता है और पोल करने वालों के निष्पक्ष निर्णय के रूप में नहीं देखा जाता। नरेंद्र मोदी के नहीं चुने जाने के पीछे की बड़ी वजह यही रही होगी। इसकी प्रमुख वजह यह सच भी रहा होगा कि वर्ष के दौरान नरेंद्र मोदी का ऐसा कोई कार्य नहींं था, जिससे पूरी दुनिया प्रभावित हुई हो।
मैगजीन ने यह खिताब देने का सिलसिला 1927 से शुरू किया और अब तक की सूची में भारत से केवल एक ही नाम शामिल है। वह नाम है मोहनदास करमचंद गांधी। वह 1930 में टाइम पर्सन ऑफ द ईयर घोषित किए गए थे। उन्हें नमक आंदोलन और दांडी मार्च के लिए चुना गया था। बता दें कि टाइम मैग्जीन उस वर्ष दुनिया को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली शख्सीयत को पर्सन ऑफ द ईयर चुनता है। चाहे उसने नकारात्मक रूप से ही दुनिया पर अपना असर क्यों न छोड़ा हो। यही वजह है कि 1930 में अगर शांति और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को चुना गया तो 1938 में अडॉल्फ हिटलर को इस खिताब से नवाजा गया। इस लिहाज से देखा जाए तो नरेंद्र मोदी को चुना जाना वैसे ही संभावित नहीं था। टाइम पर्सन ऑफ द ईयर के लिए अब तक चुने गए लोगों की फेहरिस्त देखें तो वैश्विक स्तर पर प्रभुत्व जमाने वालों का ही दबदबा रहा है।
1927 में टाइम पत्रिका ने यह चलन शुरू किया था। तब इस खिताब का नाम ‘मैन ऑफ द ईयर’ हुआ करता था। उस वक्त कई लोगों को यह खिताब दिए जाने पर विवाद हुआ, मसलन हिटलर के बाद, 1939 और 1942 में जोसेफ स्टालिन, 1957 में निकिता खुर्चेस्कोव और अयातुल्लाह खोमेनी को 1979 में इस खिताब से नवाजे पर खासा विवाद हुआ था। हालांकि मैगजीन ने सफाई दी कि इन शख्सियतों ने विश्व पर जो प्रभाव छोड़ा, उसकी वजह से उन्हें खिताब दिया गया।
इंटरनेट के आने के बाद से टाइम मैगजीन हर साल अपने पाठकों के बीच सर्वे कराती है, जिसमें लोग अपने पर्सन ऑफ द ईयर का चुनाव करते हैं। ज्यादातर लोग इस सर्वे के विजेता को ही पर्सन ऑफ द ईयर मान लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। पर्सन ऑफ द ईयर का चुनाव अंतिम रूप से टाइम पत्रिका के संपादकों द्वारा किया जाता है।