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बोको हरम की हैवानियत / सैयद सलमान
Friday, December 4, 2020 - 10:32:18 AM - By सैयद सलमान 

बोको हरम की हैवानियत / सैयद सलमान
बोको हरम की कार्यशैली का अगर बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो यह पता चलता है कि यह महज़ एक आतंकी संगठन नहीं बल्कि धरती पर फ़ितना फैलाने वाला शैतान है
साभार- दोपहर का सामना 04 12 2020

दहशत का पर्याय और अपनी क्रूरता के ल‍िए कुख्‍यात बोको हरम फिर चर्चा में है। बोको हरम के आतंकवादियों ने क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए पिछले दिनों नाइजीरिया में एक बार फिर एक ख़ौफ़नाक घटना को अंजाम दिया। इन आतंकियों के एक हथियारबंद समूह ने क़त्लेआम करते हुए खेतों में काम करने वाले ११० लोगों की सरे आम गला काटकर निर्मम हत्या कर दी। इतना ही नहीं, औरतों को उठाकर अपने साथ ले गए। इस दौरान कई लोग घायल भी हो गए। आतंकियों ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए ज़ुल्म की सारी हदें पार कर दीं। उन्होंने पहले मज़दूरों के हाथों को बांधा और फिर बेरहमी के साथ उनके गले रेत दिये। बोको हरम लगातार मज़दूरों, किसानों, चरवाहों आदि को निशाना बनाता आया है। पिछले महीने ही दो अलग-अलग घटनाओं में बोको हरम के आतंकियों ने खेतों में काम कर रहे २२ किसानों की निर्मम हत्या कर दी थी। एक रिपोर्ट के अनुसार, २००९ के बाद से नाइजीरिया में तैयार हुए ऐसे आतंकवादियों के हमलों के कारण ३६ हज़ार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, जबकि २० लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि यह सब इस्लाम और जिहाद के नाम पर हो रहा है।

अफ़्रीका में फैल चुके ख़ूँख़ार आतंकी संगठन बोको हरम ने पश्चिमी शिक्षा और मान्यताओं के ख़िलाफ़ जिहाद छेड़ रखा है। यहां तक कि वोट डालने वालों को भी मार दिया जाता है। साल २००२ में बना बोको हरम एक ऐसा चरमपंथी समूह है जो नाइजीरिया से सरकार या किसी भी तरह की सत्ता को हटाकर उसे पूरी तरह से इस्लामिक स्टेट बनाना चाहता है। मुस्लिम धर्मगुरु मोहम्मद युसूफ़ द्वारा निर्मित बोको हरम के पास शुरू में केवल एक मस्जिद और इस्लामी शिक्षा देने वाला स्कूल था, जहां ग़रीब बच्चों को पढ़ाया जाता था। धीरे-धीरे ग़रीबी झेल रहे सैकड़ों नाइजीरियाई बच्चे यहां आने लगे। लेकिन बाद में बात पढ़ाई से आगे निकल गई। धीरे-धीरे संगठन ने कट्टर राजनैतिक विचारधारा को अपना लिया और इस्लामिक देश बनाने के लिए स्कूली पढ़ाई की जगह अपनी ही तरह के कट्टर विचारधारा वाले बच्चों और किशोरों का ब्रेनवॉश करने लगा। इसी के साथ उन्हें आतंकवाद में इस्तेमाल करने के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी देनी शुरू कर दी। बच्चों को अग़वा करना, आतंकी बनाना, उनसे फ़िदायीन हमले करवाना और शरई क़ानून के नाम पर बेगुनाहों का सिर कलम करना बोको हरम के आतंकियों का ख़ूनी शग़ल है। बोको हरम की कार्यशैली का अगर बारीकी से विश्लेषण किया जाए तो यह पता चलता है कि यह महज़ एक आतंकी संगठन नहीं बल्कि धरती पर फ़ितना फैलाने वाला शैतान है। इस्लाम और जिहाद के नाम पर किये गए यह कुकृत्य क़त्तई इस्लामी शिक्षानुसार जायज़ नहीं हैं। और जब यह ग़ैर-इस्लामी कुकृत्य हैं, तो यक़ीनन पाप का झंडाबरदार बोको हरम इस्लामी संगठन हरगिज़ नहीं हो सकता।

२००९ में बोको हरम प्रमुख मोहम्मद युसूफ़ मारा गया जिस से लगा कि यह संगठन अब ख़त्म हो जाएगा। लेकिन यह बात तब ग़लत साबित हुई जब इस संगठन की क्रूरता जारी रही। यह कुख्यात संगठन २०१४ में एक बार फिर नकारात्मक चर्चा में तब आया जब इसने नाइजीरिया के चिबोक क़स्बे से २७६ बच्चियों को अग़वा कर लिया। इन लड़कियों को बोर्डिंग स्कूल से उठाया गया था। इस घटना के बाद पूरी दुनिया में तहलका मच गया। किसी को नहीं पता था कि लड़कियां कहां रखी गई हैं और वे ज़िंदा हैं भी या नहीं। ४ साल बाद १०७ लड़कियां लौटा दी गईं, लेकिन आज भी बाक़ी लड़कियां लापता हैं। अब उनके लौटने की उम्मीद भी लगभग ख़त्म है। लौटकर आने वाली लड़कियों के ढंके-छुपे बयानों से पता चला कि लड़कियों से खाना पकवाने और मज़दूरी कराने के साथ ही उन्हें सेक्स स्लेव बनाकर रखा जाता था। हर लड़की को एक टेंट में रखा जाता, जहां आतंकी आते और अपने लिए लड़की चुनकर ले जाते। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई बार इस तरह की घटनाओं की निंदा की गई, लेकिन रोकथाम के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाए जा सके। माना जाता है कि बोको हरम को कई आतंकी संगठन और विश्व में आतंक फैलाने के लिए इन संगठनों को इस्तेमाल करने वाले हथियारों के सप्लायर देश भी आर्थिक मदद करते हैं। शायद इन्हीं कारणों से यह संगठन मज़बूत हुआ है।

बोको हरम का अधिकृत नाम 'जमात अहल अस सुन्ना लिद दावा वल जिहाद' है, जिसका अर्थ है, 'पैग़ंबर की शिक्षा और जिहाद को बढ़ाने में जुटे हुए लोग।' क्या यह दुःखद नहीं है कि अपने पाप को अंजाम देने के लिए आतंकी उस पैग़ंबर के नाम का सहारा ले रहे हैं जिसे 'रहमतुल-लिल-आलमीन' यानि 'समस्त संसार के लिए दयाशील' का लक़ब मिला हो। वैसे बोको हरम का नाइजीरियाई भाषा होसा में शाब्दिक अर्थ है 'पश्चिमी शिक्षा हराम यानी वर्जित है।' ये संगठन उस काल की बात करता है जो पैग़ंबर मोहम्मद साहब के आने से भी पहले का काल था। ये कट्टरपंथी विचारों को मानता है और यक़ीन करता है कि मुसलमानों को पश्चिमी तौर-तरीक़ों से दूरी रखनी चाहिए, चाहे वो सामाजिक, शैक्षणिक या फिर आर्थिक हो। इसके तहत इलेक्शन में वोट करना पाप है। आधुनिक कपड़े पहनना या लड़कियों का घर से बाहर निकलना भी वर्जित है। जबकि इसके विपरीत पैग़ंबर मोहम्मद साहब का फ़रमान था कि शिक्षा ग्रहण करने लिए अगर चीन जाना पड़े तो जाओ। अरब के लिए चीन उस ज़माने में बहुत दूर माना जाता था। मोहम्मद साहब के ज़माने में वैश्विक कारोबार के दरवाजे खुले। विदेशी व्यापारी अरब आते और अरब ताजिर तिजारत के लिए विश्व के विभिन्न देशों में जाते। पैदा होते ही लड़कियों को मार देने का चलन था जिसे मोहम्मद साहब ने ही बंद कराया। लेकिन बोको हरम पैग़ंबर मोहम्मद साहब की शिक्षा के ठीक विपरीत काम कर रहा है। इन्हें मुसलमान कहना ही मुसलमानों का अपमान है। क्या इनके मुस्लिम नामों की वजह से ही मुसलमानों को निशाना नहीं बनाया जाता? यह लोग सिर्फ़ किसी एक क़ौम नहीं बल्कि मुस्लिम सहित पूरे समाज और मानवता के लिए कलंक हैं।

आज लगभग पूरी दुनिया आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक आतंकवाद का शिकार है। आतंकवाद से पूरी दुनिया त्रस्त है और मुस्लिम समाज भी उस से अछूता नहीं है। मुस्लिम समाज को अनगिनत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें शिक्षा के बाद सबसे बड़ा मामला आतंकवाद का है। इस्लाम विरोधी ताक़तों ने मुस्लिम देशों को युद्ध के मैदान में बदल दिया है। दूसरी तरफ़ आतंकी संगठन खुद भी मुसलमानों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। अलक़ायदा, आईएसआईएस, बोको हरम जैसे अनेक संगठन मुस्लिम देशों के साथ ही विश्व के अनेक देशों में आतंकवाद फैला रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आतंकवाद जैसे कुख्यात कर्म के लिए मुस्लिम समाज और इस्लाम बदनाम हो रहा है। मुस्लिम समाज को समझना होगा कि वह २१ वीं सदी में प्रवेश कर गया है। उसे यह भी समझना होगा कि कोई भी क़ानून समाज में निर्णायक भूमिका बाद में निभाता है, व्यवहार और रवैये उस से पहले निर्णायक होते हैं। इतिहास गवाह है कि दुनिया की सभ्यताएं क़ानून की अनुपस्थिति के कारण नहीं बल्कि क़ानून के उल्लंघन के कारण नष्ट हुई हैं। मुस्लिम समाज अनेक मुस्लिम देशों में सत्तासीन बादशाहों और तानाशाही के कारण विकसित नहीं हो पाए हैं। शासक और समाज के बीच एक बड़ा अंतर है और उनमें आपसी विश्वास की कमी है। जब तक इस तरह की सरकारें हैं, तब तक समाज में एक प्रकार की जड़ता और स्थिरता कायम रहेगी। राष्ट्रों के जीवन में शैक्षणिक पाठ्यक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्या यह सत्य नहीं कि आधुनिक अनुसंधान की दुनिया में मुसलमान औरों के मुक़ाबले काफ़ी पीछे छूट गया है? मुस्लिम समाज की आंतरिक और बाहरी समस्याओं में प्राथमिकताएं निर्धारित करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके बिना मुस्लिम समाज समस्याओं के वास्तविक समाधान तक नहीं पहुंच सकता। मुस्लिम समाज को एक ऐसी रणनीति पर अमल करने की तत्काल आवश्यकता है जो समाज की आधुनिक समस्याओं का निराकरण कर सके, उनके लिए वह सहज और सामान्य हो और समाज को नई दिशा दे सके।


(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में विजिटिंग फैकेल्टी हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)