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बग़दादी तो मर गया- आतंक कब मरेगा / सैयद सलमान
Friday, November 8, 2019 - 12:32:43 PM - By सैयद सलमान

बग़दादी तो मर गया- आतंक कब मरेगा / सैयद सलमान
सैयद सलमान
​साभार- दोपहर का सामना 08 11 2019

​आईएसआईएस सरगना अबू बकर अल-बग़दादी की मौत की ख़बर ने पिछले दिनों पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया। ओसामा बिन लादेन के बाद आतंक का पर्याय बने अल-बग़दादी की मौत की ख़बर से ख़ासकर उन देशों ने कुछ हद तक राहत की सांस ली है जिन देशों में आईएसआईएस ने कहर बरपा रखा है। अमेरिकी सरकार ने अल-बग़दादी के सिर पर ढाई करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा था। आईएसआईएस के साथ आतंकविरोधी देशों की तरफ से छेड़ी गई लंबी जंग के दौरान कई बार अल-बग़दादी के मारे जाने की ख़बर आई। अबू बकर अल-बग़दादी न सिर्फ़ आतंकी संगठन आईएसआईएस का मुखिया था बल्कि उसने ख़ुद को विश्व भर के मुसलमानों का ख़लीफ़ा घोषित कर रखा था। अबू बकर अल-बग़दादी के नेतृत्व में आईएसआईएस ने इराक़ और सीरिया के बड़े इलाक़ों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया था। इस इलाक़े में आईएसआईएस ने कट्टरपंथी विचारधारा को बड़ी क्रूरता से लागू किया और इस्लामिक क़ानून अर्थात शरिया से चलने वाली सरकार की स्थापना की।

आईएसआईएस द्वारा ग़लत तरीके से इस्लाम के नाम पर फैलाई गई कट्टरपंथी विचारधारा से आकर्षित होकर धीरे-धीरे कई देशों के भटके हुए नौजवान आईएसआईएस की तरफ आकर्षित हुए और उससे जुड़ गए। दुनिया में पनप रहे कई आतंकवादी संगठन भी आईएसआईएस से जुड़े और उन्होंने स्वयंघोषित ख़लीफ़ा बग़दादी के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया। इसके बाद बग़दादी के नेतृत्व में आईएसआईएस ने इराक़ और सीरिया के अलावा दुनिया के कई हिस्सों में आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया। अल-बग़दादी पूरी दुनिया के लिए आतंक का सबसे डरावना चेहरा बन गया। अल-बग़दादी की करतूतों से चौदह सौ वर्षों के इतिहास में इस्लाम की ऐसी विकृत व्याख्या कभी सामने नहीं आई। अल-बग़दादी ने अपनी राजनीति साधने और अपना वर्चस्व बनाने के लिए आतंकी संगठनों और आतंकियों के साथ ही मानो पूरे इस्लाम पर क़ब्ज़ा कर लिया। एक तरह से २१वीं सदी में इस्लाम को दुनिया का सबसे बड़ा दुश्मन बनाने में बग़दादी की बड़ी भूमिका रही। अल-बग़दादी अपनी धार्मिक कट्टरता और आतंक के कारण सारी दुनिया की ख़बरों में छाया रहा। उससे पहले ओसामा बिन लादेन अमेरिका पर आतंकी हमले के कारण सबसे बड़े आतंकवादी के रूप में जाना जाता था। लेकिन अल-बग़दादी और उसके संगठन दुनिया भर में आतंकी हमले करके अपनी बर्बरता के दृश्य रिकॉर्ड करते और अपनी वेबसाइट पर पोस्ट करते रहते। इन दृश्यों की वीभत्सता और बगदादी की कट्टरपंथी सोच ने एक आतंकी के रूप में ओसामा को भी पीछे छोड़ दिया। अल-बग़दादी का संगठन आईएसआईएस अल-क़ायदा से भी कई गुना अधिक कट्टरपंथी और आतंकी सिद्ध हुआ। कहने में हर्ज नहीं कि आईएसआईएस कट्टरपंथी आतंकवाद का वो चेहरा है जिसके आधार पर तालिबान, अल-क़ायदा, बोको हरम, अल-शबाब जैसे संगठन भी उपजे हैं।

दुनिया भर में अल-बग़दादी की मौत को लेकर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ ने इसे आतंकवाद के ख़िलाफ़ बड़ी जीत बताया तो कुछ सरकारों ने इसे बहुत तवज्जो नहीं दी। सऊदी अरब, तुर्की, अफ़ग़ानिस्तान, मिस्र सहित अनेक मुस्लिम देशों ने अल-बग़दादी की मौत को आतंकवाद से निपटने की दिशा में बेहद अहम क़दम बताया। हालांकि ईरान की प्रतिक्रिया इनसे थोड़ी अलग रही। ईरान के सूचना मंत्री मोहम्मद जावेद ज़रीफ़ के अनुसार अल-बग़दादी की मौत कोई बहुत बड़ी बात नहीं है क्योंकि अमेरिका ने अपने ही जीव को मारा है। दरअसल, ईरान अक्सर अमेरिका पर आईएसआईएस को पैदा करने का आरोप लगाता रहा है। ईरान और अमेरिका के कटु रिश्ते से पूरी दुनिया वाक़िफ़ है। हालांकि इस्लामी देशों के सम्मानित देश सऊदी अरब ने अल-बग़दादी को इस्लाम की असली छवि बिगाड़ने वाला बताया और अपराधों को अंजाम देने वाले आतंकी संगठन के सदस्यों के ख़िलाफ़ अमेरिकी कार्रवाई की सराहना की।

अल-बग़दादी की मौत से आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा ऐसा दावा करना मूर्खता होगी। जिन कारणों ने अल-बग़दादी को पैदा किया यदि उनका हल नहीं निकलता, तो कब दूसरा ओसामा या अल-बग़दादी उठा खड़ा हो, कहा नहीं जा सकता। बग़दादी प्रकरण के बहाने उन प्रश्नों पर विचार करने की ज़रूरत है जो कि अत्यंत गंभीर हैं। इंसानियत की सुरक्षा और सही इस्लाम की शिक्षा के लिए उनका उत्तर तलाश करना भी ज़रूरी है। एक प्रश्न तो यह है कि आख़िर इस इक्कीसवीं सदी में एक बड़े मुस्लिम युवा वर्ग में कट्टरपंथी अल-बग़दादी जैसे व्यक्ति और उसके द्वारा क़ायम की गई स्वघोषित इस्लामी ख़िलाफ़त के प्रति उत्साह, आकर्षण और सम्मान कैसे पनपता है? अपना घर-परिवार, अपना कैरियर दांव पर लगाकर आतंकवादी संगठनों में शामिल होने का जज़्बा आख़िर कैसे और क्यों पैदा हो जाता है? एक प्रश्न यह भी है कि क्या अल-बग़दादी और आईएसआईएस के ख़ात्मे के पश्चात इस्लाम के नाम पर फैलाए जा रहे आतंकवाद का भी ख़ात्मा हो जाएगा? वैसे तो अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने आईएसआईएस के ख़िलाफ़ वर्षों से जंग छेड़ रखी थी लेकिन सालों तक वे उस समूह पर क़ाबू नहीं पा सके। आईएसआईएस के आतंकवादी आज भी कई जगहों पर फैले हुए हैं और दुनिया के लिए एक चुनौती बने हुए हैं। इराक़ में इस्लामिक संगठन से जुड़े लड़ाके अमेरिका समर्थित फ़ौजों से लड़ाई हार चुके हैं, इस वजह से अब वो गुरिल्ला वॉर के हथकंडों पर लौट आए हैं। ऐसा नहीं है कि अमेरिकी फ़ौजों के हमले के बाद से इस्लामिक संगठन के कैंप बंद हो गए हों, ये कैंप अब भी वहां चल रहे हैं। आईएसआईएस के लगभग दो हज़ार आतंकी अपहरण, बलात्कार और अन्य हिंसक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।

दरअसल मुस्लिम शासकों और साम्राज्यों ने अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी की प्रगतिशील सभ्यता को और औद्योगिक क्रांति को नहीं पहचाना। उस दौर में जब वैज्ञानिक विज़न, लोकतांत्रिक राजनीति और आधुनिक अर्थव्यवस्था पर आधारित समाज की संरचना तैयार हो रही थी तब भी उसके विपरीत जाकर मुस्लिम सभ्यता बादशाही और सामंतवादी मूल्यों पर आधारित बनी रही। पवित्र ग्रंथ क़ुरआन की असल शिक्षा से मुंह मोड़कर अलग-अलग विचारों के ज़रिए इस्लाम को अपनी जेब में रखने वाले कथित उलेमा की किताबों के आईने में धर्म की व्याख्या होती रही। ऐसे में मुसलमान धर्म और मूल्यों के आधार पर दुनिया से ज़्यादा कटने लगा। हालांकि बड़ी चालाकी से उन मूल्यों को धार्मिक लबादा ओढ़ाकर मुसलमानों को बरगलाया गया। क़ुरआन ने 'इक़रा' यानि 'पढ़' की सीख दी, लेकिन हुक्मरानों द्वारा मुसलमानों को आधुनिक और समाजयोपयोगी शिक्षा से दूर रखने की तमाम कोशिशें हुईं। आज भी अनेक मदरसों में आधुनिक शिक्षा को लेकर उदासीनता है। ऐसे में बौद्धिक विकास में काफ़ी पीछे छूटे मुस्लिम युवावर्ग को कट्टरपंथ की अफ़ीम का नशा देना आसान होता गया और ओसामा और अल बग़दादी जैसी नकारात्मक सोच ने अपने पैर फैलाए। समस्या इस्लाम या मुसलमानों की नहीं है, समस्या उस शिक्षा की है जहाँ धर्म के नाम पर हिंसा को जायज़ और जिहाद को जन्नत का मार्ग बताया जा रहा है। होना तो यह चाहिए था कि क़ुरआन की सर्वशिक्षा को आम कर मानवीय आधार पर सार्वभौमिक और आधुनिक शिक्षा के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चला जाता। अगर आगे भी ऐसा नहीं हुआ तो ओसामा और अल-बग़दादी के मारे जाने से क्या होगा? अभी भी मसूद अज़हर जैसी विचारधारा मौजूद है और आतंक को धर्म के नाम पर जायज़ ठहरा सकती है।